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Showing posts from April, 2022

पर्वत

  पर्वत तू   अनंत   काल   से   अडिग   यहाँ   खड़ा   मैं   क्षण   बर   आके   तुझे   देखता   हूँ तू   भूत   भविष्य   से   परे   मैं   नश्वर  -  जलते ही    बुझने   को   बना   हूँ तू   मेरे   जीवन   के   बाद   भी   यहाँ   स्थिर   रहेगा और   मैं   कई   जन्मों   कई   रूपों   में   तेरा   साक्षात्कार   करके अपने   अनश्वर   होने   का   प्रमाण   दूंगा तेरा   भाग्य   स्थिर   होकर   जीवन   दर्शन   करना और   मेरा   घूम   घूम   कर    --  शैली --
मैं राख से जन्मा , और  ख़ाक  में मिटता रोज़ सुबह उगता, फिर रात में ढलता आकाश की ऊंचाई से समुद्र की गहराई में मैं अनंतकाल से भविष्य की हर कहानी में मैं जन्म मरण के बीच कहीं सिमटा मैं सवालों जवाबों के बीच कहीं उलझा मैं आज और कल मैं कहीं भटकता मैं रोज़ गिरता और फिर संभालता मैं खुद में खुद को खोजता ओर भटकते हुए फिर खुद से जा मिलता मैं राहगीर और मैं ही मंज़िल मैं रोज़ जन्म लेता और हजार मौत मरता - शैली -