मैं राख से जन्मा , और ख़ाक में मिटता
रोज़ सुबह उगता, फिर रात में ढलता
आकाश की ऊंचाई से समुद्र की गहराई में
मैं अनंतकाल से भविष्य की हर कहानी में
मैं जन्म मरण के बीच कहीं सिमटा
मैं सवालों जवाबों के बीच कहीं उलझा
मैं आज और कल मैं कहीं भटकता
मैं रोज़ गिरता और फिर संभालता
मैं खुद में खुद को खोजता
ओर भटकते हुए फिर खुद से जा मिलता
मैं राहगीर और मैं ही मंज़िल
मैं रोज़ जन्म लेता और हजार मौत मरता
- शैली -
रोज़ सुबह उगता, फिर रात में ढलता
आकाश की ऊंचाई से समुद्र की गहराई में
मैं अनंतकाल से भविष्य की हर कहानी में
मैं जन्म मरण के बीच कहीं सिमटा
मैं सवालों जवाबों के बीच कहीं उलझा
मैं आज और कल मैं कहीं भटकता
मैं रोज़ गिरता और फिर संभालता
मैं खुद में खुद को खोजता
ओर भटकते हुए फिर खुद से जा मिलता
मैं राहगीर और मैं ही मंज़िल
मैं रोज़ जन्म लेता और हजार मौत मरता
- शैली -
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